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20 मिनट पहले
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उत्तराखंड सरकार की मदरसों पर कार्रवाई जारी है। रविवार को उत्तराखंड सरकार ने हल्द्वानी के बलभूनपुरा इलाके में ताबड़तोड़ छापेमारी करते हुए 6 मदरसों को सील कर दिया है। इन मदरसों के खिलाफ मान्यता न होने और सुरक्षा और स्वच्छता के मानकों के उल्लंघन का आरोप है।
इस दौरान प्रशासन के साथ भारी पुलिस बल तैनात रहा। इसके साथ ही इलाके में हिंसा न हो जाएं इसलिए बाद में भी पुलिस बल तैनात किया गया है।
मस्जिदों के अंदर ही चल रहे थे मदरसे
हल्द्वानी के अपर जिलाधिकारी विवेक राय ने बताया कि इन मदरसों में से ज्यादातर के पास शैक्षिक या सरकारी मान्यता नहीं थी। इसके अलावा इनमें बैठने की उचित व्यवस्था, शौचालय और साफ-सफाई की कमी थी। साथ ही सुरक्षा के लिए जरूरी इंतजाम जैसे CCTV भी यहां नहीं मिले।
वहीं, कुछ मदरसे मस्जिद के अंदर ही संचालित होते पाए गए जो नियमों के अनुसार गलत है।
पन्ना में प्रशासन ने ध्वस्त किया मदरसा
पन्ना के वार्ड क्रमांक 26 बीडी कॉलोनी में शासकीय जमीन पर बने अवैध मदरसे को प्रशासन ने ध्वस्त कर दिया है। वक्फ बोर्ड जिला अध्यक्ष अब्दुल हमीद उर्फ बाती और सलीम खान की शिकायत के बाद यह कार्रवाई की गई।
मदरसा संचालक अब्दुल रऊफ और कुछ सदस्यों ने पहले खुद भवन को गिराना शुरू किया था। शनिवार की रात प्रशासन ने पूरी कार्रवाई को अंजाम दिया। एडीएम, तहसीलदार और नगरपालिका की टीम ने मौके पर पहुंचकर बुल्डोजर से पूरी बिल्डिंग को जमींदोज कर दिया।
तहसीलदार अखिलेश प्रजापति के अनुसार एक महीने पहले मदरसे की जमीन की जांच की गई थी। जांच में यह जमीन शासकीय पाई गई। इसके बाद मदरसा संचालक को अतिक्रमण हटाने का नोटिस जारी किया गया था।
2024 में मदरसों को सुप्रीम कोर्ट ने राहत दी थी
उत्तराखंड और मध्य प्रदेश से पहले उत्तर-प्रदेश में मदरसों के खिलाफ कार्रवाई शुरू हुई थी। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग यानी NCPCR ने कोर्ट से सिफारिश की थी कि अगर यूपी में मदरसों को बंद किया जा रहा है तो इनमें पढ़ने वाले बच्चों को दूसरे स्कूलों में एडजस्ट करना चाहिए। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए यूपी के मदरसों को बंद करने के फैसले पर रोक लगा दी थी। इसी के साथ कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा सरकार के उस आदेश पर भी रोक लगाई थी जिसमें मदरसों में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स को सरकारी स्कूल में ट्रांसफर करना था। इसमें गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों के साथ-साथ सरकारी सहायता प्राप्त मदरसों में पढ़ने वाले गैर-मुस्लिम स्टूडेंट्स शामिल हैं।

NCPCR ने कहा- मदरसों में शिक्षा के अधिकार कानून का पालन नहीं हो रहा
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने 12 अक्टूबर को कहा था कि ‘राइट टु एजुकेशन एक्ट 2009’ का पालन नहीं करने वाले मदरसों की मान्यता रद्द हो और इनकी जांच की जाए। NCPCR ने सभी राज्यों को लेटर लिखकर कहा था कि मदरसों को दिया जाने वाला फंड बंद कर देना चाहिए। ये राइट-टु-एजुकेशन (RTE) नियमों का पालन नहीं करते हैं।
आयोग ने ‘आस्था के संरक्षक या अधिकारों के विरोधी: बच्चों के संवैधानिक अधिकार बनाम मदरसे’ नाम से एक रिपोर्ट तैयार करने के बाद ये सुझाव दिया था। आयोग ने कहा था कि, ‘मदरसों में पूरा फोकस धार्मिक शिक्षा पर रहता है, जिससे बच्चों को जरूरी शिक्षा नहीं मिल पाती और वे बाकी बच्चों से पिछड़ जाते हैं।’

यूपी मदरसा विवाद की टाइमलाइन…
साल 2004- यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट, 2004 को मदरसों की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए लाया गया था। इस कानून के तहत मदरसों के लिए बोर्ड से मान्यता प्राप्त करने के लिए कुछ एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया भी तय किए गए थे। बोर्ड मदरसों के लिए सिलेबस तैयार करने, टीचिंग मटेरियल और टीचर्स को ट्रेनिंग देने का काम करता था।
साल 2012- मदरसा एक्ट के खिलाफ सबसे पहले 2012 में दारुल उलूम वासिया मदरसा के मैनेजर सिराजुल हक ने याचिका दाखिल की थी। फिर 2014 में माइनॉरिटी वेलफेयर लखनऊ के सेक्रेटरी अब्दुल अजीज और 2019 में लखनऊ के मोहम्मद जावेद ने याचिका दायर की थी। इसके बाद 2020 में रैजुल मुस्तफा ने दो याचिकाएं दाखिल की थीं। 2023 में अंशुमान सिंह राठौर ने याचिका दायर की। सभी मामलों को नेचर एक था। इसलिए हाईकोर्ट ने सभी याचिकाओं को मर्ज कर दिया।
साल 2022- यूपी सरकार को सामाजिक संगठनों और सुरक्षा एजेंसियों से इनपुट मिले थे कि अवैध तरीके से मदरसों का संचालन किया जा रहा है। इस आधार पर उत्तर प्रदेश परिषद और अल्पसंख्यक मंत्री ने सर्वे कराने का फैसला लिया था। इसके बाद हर जिले में 5 सदस्यीय टीम बनाई गई। इसमें जिला अल्पसंख्यक अधिकारी और जिला विद्यालय निरीक्षक शामिल थे।
10 सितंबर 2022 से 15 नवंबर 2022 तक मदरसों का सर्वे कराया गया था। इस टाइम लिमिट को बाद में 30 नवंबर तक बढ़ाया गया। इस सर्वे में प्रदेश में करीब 8441 मदरसे ऐसे मिले थे, जिनकी मान्यता नहीं थी।


मार्च 2024- इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मदरसा एजुकेशन एक्ट, 2004 को असंवैधानिक घोषित कर दिया है। 22 मार्च को कोर्ट की लखनऊ बेंच ने कहा है कि उत्तर प्रदेश का मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम धर्मनिरपेक्षता, भारतीय संविधान के आर्टिकल 14 ,15 (समानता का अधिकार) और 21-A (शिक्षा का अधिकार) के खिलाफ है। इसके बाद कोर्ट ने मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को दूसरे स्कूलों में ट्रांसफर करने का आदेश भी दिया है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि मदरसे से पढ़ने वाले बच्चे सिर्फ 10वीं-12वीं की योग्यता वाली नौकरियों के लायक हैं।
हालांकि मार्च में ही सुप्रीम कोर्ट ने ‘यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004’ को असंवैधानिक करार देने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। इसके साथ ही केंद्र और यूपी सरकार से जवाब भी मांगा। कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले से 17 लाख छात्रों पर असर पड़ेगा। छात्रों को दूसरे स्कूल में ट्रांसफर करने का निर्देश देना ठीक नहीं है।
बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट प्रथमदृष्टया सही नहीं है। ये कहना गलत होगा कि यह मदरसा एक्ट धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन करता है।
यूपी मदरसों में NCERT सिलेबस लागू
लखनऊ समेत प्रदेश के सभी मदरसों में NCERT पाठ्यक्रम लागू किया जा रहा। मदरसा बोर्ड के रजिस्ट्रार आर.पी. सिंह ने बताया कि नए शैक्षिक सत्र 2025-26 से NCERT लागू कर दिया गया है। अब कक्षा 1 से 3 तक मदरसों में पढ़ने वाले बच्चे NCERT की किताबों से शिक्षा हासिल करेंगे। प्रदेश के सभी मदरसों के बच्चों को बेसिक शिक्षा परिषद की तर्ज पर एनसीईआरटी की किताबें उपलब्ध कराई जाएंगी। इस संबंध में मदरसा शिक्षा परिषद की ओर से निर्देश जारी कर दिया गया है।
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