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6 घंटे पहलेलेखक: उत्कर्षा त्यागी
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मैं अपने बच्चे की क्वालिटी ऑफ एजुकेशन के साथ बिल्कुल कॉम्प्रोमाइज नहीं करूंगा। भले ही उसके लिए लोन लेना पड़े।
– 32 वर्षीय कॉर्पोरेट कर्मचारी, 2 साल के बेटे के पिता हैं

शादी को दो साल हो गए हैं। घरवालों का काफी प्रेशर है लेकिन मैं बच्चा नहीं चाहती। मैं नहीं चाहती कि प्राइमरी स्कूल के लिए में 50 हजार फीस भरूं, जहां बच्चे का होमवर्क मोबाइल फोन पर आए। कॉलेज एडमिशन के टाइम 90% के बावजूद उसे सीट न मिले।
– सुष्मिता शाही, 27 साल की एजुकेटर हैं

मैंने बेटे को लोन ले-लेकर पढ़ाया है। हैसियत से बढ़कर स्कूल में डाला। कमाई का 70% बच्चे पर ही खर्च करती आईं हूं।
– 40 साल की वर्किंग वुमन, 20 साल के बेटे की मां हैं
यूनाइटेड नेशंस यानी UN के अनुसार 2025 में भारत की पॉपुलेशन 1.6 बिलियन हो चुकी है। इस तरह भारत दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है लेकिन यहां फर्टिलिटी रेट घटकर 1.9 रह गया है जो पॉपुलेशन रिप्लेसमेंट रेट 2.1 से कम है। इसकी दो बड़ी वजह हैं- आर्थिक रुकावटें और काम को लेकर संघर्ष
UNFPA स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन 2025 की द रियल फर्टिलिटी क्राइसिस रिपोर्ट में ये आंकड़े सामने आए हैं। रिपोर्ट के अनुसार 38% भारतीय आर्थिक कारण और 21% बेरोजगारी और जॉब सिक्योरिटी की कमी की वजह से बच्चा पैदा करने से कतरा रहे हैं।
इसे समझने के लिए हमने कुछ युवाओं से बात की। ज्यादातर ने आर्थिक समस्याओं को ही बच्चे पैदा न करने का कारण बताया-

मैं बच्चे नहीं पैदा करना चाहता क्योंकि बच्चा पालने की मेरी स्थिति नहीं है। आर्थिक तौर पर भी मैं खुद को सक्षम नहीं मानता। इसकी वजह नौकरी का संकट और आर्थिक असुरक्षा ही है।
– 27 वर्षीय कंटेंट राइटर

मैं बच्चे नहीं चाहता क्योंकि बच्चे पालना एक बड़ी जिम्मेदारी है जिसके लिए मैं खुद को सक्षम नहीं मानता।
– 29 वर्षीय बिजनेसमैन
सबसे पहले समझते हैं कि आखिर फर्टिलिटी रेट का पॉपुलेशन रिप्लेसमेंट रेट से कम होना समस्या क्यों है।



रिपोर्ट के अनुसार, फर्टिलिटी रेट अगर 1.9 रहा तो 40 सालों में भारत में पॉपुलेशन डिक्लाइन होगा। तब तक भारत की आबादी 1.7 बिलियन पर पहुंच चुकी होगी।
पॉपुलेशन डिक्लाइन का मतलब है कि हमारे देश में बूढ़े ज्यादा होंगे और बच्चे कम पैदा होंगे और धीरे-धीरे युवाओं की आबादी बुजुर्गों के मुकाबले कम रह जाएगी। इससे प्रोडक्टिव यानी काम करने वाले और इकोनॉमी को चलाने वाली आबादी कम हो जाएगी और निर्भर रहने वाली आबादी बढ़ जाएगी।
भारत की हालत जापान की तरह भी हो सकती है। वहीं 2.1 फर्टिलिटी रेट सुरक्षित उपाय है यानी इससे पॉपुलेशन का बैलेंस बना रह सकता है।
नौकरी तलाश रहे हर 100 में से 5 से ज्यादा बेरोजगार
मिनिस्ट्री ऑफ स्टैटिस्टिक्स एंड प्रोग्राम के पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे के अनुसार, अप्रैल 2025 में भारत की बेरोजगारी दर 5.1% रही।
बेरोजगारी दर में देश के हर युवा को नहीं जोड़ा जाता। इसमें केवल उन युवाओं को शामिल किया जाता है जो नौकरी की तलाश कर रहे हैं। इसका मतलब है कि भारत में नौकरी तलाश रहे हर 1000 में से 51 लोग बेरोजगार हैं। इस सर्वे के हिसाब से देश में 2 करोड़ से भी ज्यादा युवा बेरोजगार हैं।
बेरोजगारी का आलम देश में यह है कि छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी सरकारी नौकरी निकलने पर लाखों युवा उसमें भर्ती होने के लिए अप्लाई करते हैं।

1 पद के लिए 120 कैंडिडेट्स प्रतियोगिता में
देश में सरकारी नौकरियों का हाल यह है कि क्लर्क की 11 हजार वैकेंसीज के लिए 1 करोड़ से भी ज्यादा लोग अप्लाई कर रहे हैं। इसका मतलब है कि एक पद के लिए करीब 1 हजार कैंडिडेट्स अप्लाई करते हैं और उसके लिए कंपीट करते हैं। यह ही नहीं 12वीं पास या ग्रेजुएट्स के लिए निकले पदों के लिए PhD होल्डर्स तक अप्लाई करते हैं।
प्राइवेट सेक्टर में हालात बदतर
केस 1-
7 अप्रैल को सोशल मीडिया पर एक वीडियो काफी वायरल हुई। वीडियो में एक आदमी के गले में कुत्ते का पट्टा बंधा हुआ दिखता है। एक दूसरा व्यक्ति उसे ऐसे टहला रहा है जैसे किसी कुत्ते को टहलाया जाता है।
एक दूसरे वीडियो में कुछ कर्मचारी किसी के आदेश पर अपने कपड़े उतारते हुए नजर आ रहे हैं। दरअसल ये वीडियो केरल की एक मार्केटिंग फर्म का था। वीडियो के एक हिस्से में कर्मचारियों से जमीन पर पड़े सिक्कों को अपने मुंह से उठाने के लिए कहा गया। आरोप था कि मार्केटिंग कंपनी के कर्मचारी अपना टारगेट पूरा नहीं कर पाए और इस वजह से उन्हें ऐसी सजा दी गई।
वीडियो वायरल होने के बाद कंपनी में काम कर रहे और पहले काम कर चुके कर्मचारियों ने एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा कि कंपनी में इस तरह की सजा मिलना काफी आम है। जब कोई कर्मचारी समय पर सेल्स टारगेट पूरा नहीं कर पाता था तो उसे जमीन पर रेंगने, सबके सामने कपड़े उतरवाना और सबके सामने मजाक उड़ाने जैसी सजाएं दी जाती थी।
केस 2-
अप्रैल में ही दिल्ली यूनिवर्सिटी के हंसराज कॉलेज की टॉपर का लिंकडिन पोस्ट काफी वायरल हुआ था। ये पोस्ट बिस्मा फरीद ने किया था। वो दिल्ली यूनिवर्सिटी के हंसराज कॉलेज की स्टूडेंट रही हैं।
उन्होंने वहां से इंग्लिश ऑनर्स की बैचलर डिग्री हासिल की थी। पढ़ाई के दौरान उन्होंने 50 से ज्यादा सर्टिफिकेट्स, 10 से ज्यादा ट्रॉफीज और 10 से ज्यादा मेडल्स जीते थे। इसके अलावा स्कूल और कॉलेज में वो हमेशा टॉप स्कोरर्स में रहीं। इसके बावजूद कॉलेज खत्म होने के बाद उन्हें इंटर्नशिप तक नहीं मिल पाई। अपना यही दर्द बिस्मा ने सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म लिंकडिन पर बयां किया था।
केस 3-
ओवरवर्क के चलते जुलाई 2024 में 26 साल की एना सेबेस्टियन पेरियल की मौत हो गई थी। एना ने 4 महीने पहले मार्च 2024 में EY कंपनी बतौर एग्जिक्यूटिव जॉइन की थी।
6 जुलाई को जब एना के माता-पिता उससे मिलने पुणे आए तो उसने सीने में दर्द की शिकायत की थी। डॉक्टर को दिखाने पर पता चला कि एना न ठीक से सो रही थी, न समय से खाना खा रही थी। उसे हर समय ऑफिस के काम की फिक्र थी।
हद से ज्यादा स्ट्रेस, एंग्जायटी और फिजिकल-मेंटल प्रेशर के चलते 20 जुलाई को एना की मौत हो गई। जिस कंपनी के लिए काम करते हुए एना की जान चली गई, उस कंपनी से कोई भी उसके लास्ट रिचुअल्स (ईसाई अंतिम संस्कार) में शामिल नहीं हुआ।
केस 4-
सितंबर 2024 के शुरुआती हफ्तों में SEBI के करीब 200 कर्मचारियों ने मुंबई ऑफिस के बाहर प्रदर्शन किया। उनकी शिकायत थी कि सीनियर्स उन्हें तरह-तरह के नामों से बुलाते है, सरेआम बेइज्जत करते हैं और लगातार बदलते टारगेट्स को पूरा करने का प्रेशर बढ़ा रहे हैं।
देश में बेरोजगारों से ज्यादा नौकरीपेशा आत्महत्या कर रहे
NCRB के 2021 के डाटा को अगर प्रोफेशन वाइज देखा जाए तो सामने आया कि बेरोजगारों से ज्यादा नौकरीपेशा लोग सुसााइड कर रहे हैं। ये आंकड़ा देश में आत्महत्या कर रहे स्टूडेंट्स और किसानों से भी ज्यादा है।

सैलरी को लेकर उम्मीदें तोड़ रहीं कंपिनयां
जॉब पोर्टल फाउंड-इट के एक सर्व में सामने आया कि भारत में काम करने वाले 47% कर्मचारी अपने सैलरी हाइक से खुश नहीं है। इसी के साथ इन लोगों ने शिकायत कर कहा कि सैलरी को लेकर उनकी उम्मीदें तोड़ी गईं और उम्मीद से बहुत कम हाइक दिया गया।
इस सर्वे में 25% लोगों ने माना कि उन्हें भी सैलरी हाइक कुछ खास नहीं मिलता लेकिन ये उन्हें कोई बड़ी समस्या नहीं लगती।
‘जो सरकार नहीं कर पाई एजुकेशन सिस्टम ने कर दिखाया’
कॉर्पोरेट में काम करने वाले एक 32 साल के एम्प्लाई ने कहा, ‘सरकार सालों तक पॉपुलेशन कंट्रोल की कोशिश करती रही लेकिन कुछ नहीं हुआ। एजुकेशन सिस्टम ने वो कर दिखाया जो सरकार नहीं कर पाई क्योंकि आज के समय पर बच्चों की पढ़ाई ही इतनी महंगी हो गई है कि लोग ज्यादा बच्चे पैदा नहीं करना चाहते।’
उनका कहना है कि अपने 2 साल के बेटे पर वो अभी से ही घर की आमदनी का 20% खर्च कर देते हैं। ये अकेले नहीं हैं। एक अन्य कर्मचारी जिनका बेटा अब ग्रेजुएशन कर रहा है, वो करीब 70% इनकम बच्चे के ऊपर ही खर्च कर रही हैं।
दरअसल, देश में स्कूलों की फीस आसमान छू रही है। दिल्ली में प्री-स्कूल यानी प्री-नर्सरी और नर्सरी जैसी क्लासेज की फीस 5 हजार रुपए से लेकर 13 हजार रुपए प्रतिमाह तक है। कई स्कूल सीट रिजर्व करने के लिए 30 हजार रुपए से लेकर 2 लाख रुपए तक वन टाइम फीस डिमांड कर रहे हैं। इसके अलावा यूनिफॉर्म, ट्रांसपोर्टेशन, स्टेशनरी, किताबें और एक्स्ट्रा-करिकुलर एक्टिविटीज की फीस अलग है।

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