25 मिनट पहले
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CBSE यानी सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन ने बोर्ड संबंधित स्कूलों के लिए गुरुवार, 22 मई को गाइडलाइंस जारी की है। इसमें प्राइमरी एजुकेशन के लिए मातृभाषा या रीजनल लैंग्वेज को इसी एकेडमिक सेशन यानी 2025-26 से मीडियम ऑफ इंस्ट्रक्शन बनाना होगा। बोर्ड ने कहा है कि शुरुआती पढ़ाई के दौरान खासतौर पर इसका ध्यान रखा जाना चाहिए।
ये गाइडलाइंस नए नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क फॉर स्कूल एजुकेशन यानी NCF-2023 के तहत जारी की गई हैं।
आधिकारिक स्टेटमेंट में कहा गया है कि NEP 2020 यानी नेशनल एजुकेशन पॉलिसी 2020 के तहत जारी इन निर्देशों में फाउंडेशनल क्लासेज यानी प्री-प्राइमरी से लेकर ग्रेड 2 तक के बच्चों के लिए घर में बोली जाने वाली भाषा में पढ़ाने पर जोर दिया गया है।

मातृभाषा में न पढ़ने ले होता है लर्निंग गैप- UNESCO
UNESCO ने मार्च 2024 में ‘लैंग्वेज मैटर-ग्लोबल गाइडेंस ऑन मल्टीलिंग्वल एजुकेशन’ रिपोर्ट जारी की थी। रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में 40% बच्चों और युवाओं के पास उनकी मदर-टंग में पढ़ने की सुविधा नहीं है। यही वजह है कि दुनिया के कई हिस्सों में बच्चे स्कूल तो जा रहे हैं लेकिन वो सिंपल टेक्स्ट नहीं पढ़ पाते और सिंपल मैथ्स सॉल्व नहीं कर पाते।
साल 2016 में 617 मिलियन बच्चे फाउंडेशनल लिट्रेसी और न्यूमरेसी नहीं सीख रहे थे। इनमें से दो तिहाई स्कूल जाते थे। कोविड महामारी से पहले लो और मिडल इनकम देशों के 57% 10-वर्षीय-बच्चे सिंपल टेक्स्ट नहीं पढ़ पा रहे थे। ये आंकड़ा कोविड महामारी के बाद 70% हो गया।

राजस्थान के डुंगरपुर में नजर आया बेहतर रिजल्ट
राजस्थान के डुंगरपुर जिले में गुजरात में बोली जाने वाली वागड़ी भाषा काफी बोली जाती हैं। साल 2019 में यहां टीचर्स ने बच्चों को वागड़ी भाषा में ही पढ़ाना शुरू किया।
इसके कुछ दिन बाद जब बच्चों का असेसमेंट लिया गया तो सामने आया कि उनकी रीडिंग स्किल्स पहले से काफी बेहतर थी। यूरोप और अफ्रीका में भी ऐसे ही नतीजे सामने आए हैं। इसके अलावा मातृभाषा में अगर बच्चे को बेसिक एजुकेशन दी जाए तो उसके लिए दूसरी भाषाएं सीखनी भी आसान हो जाती हैं। इसी के साथ 6 से 8 साल की उम्र में मातृभाषा में पढ़ाई करने वाले बच्चे ऑफिशियल लैंग्वेज में पढ़ने वाले बच्चों से बेहतर परफॉर्म करते हैं।

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