Justice Chandrachud has praised Colonel Sofia Qureshi | कर्नल सोफिया कुरैशी की तारीफ कर चुके हैं जस्टिस चंद्रचूड़: महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन दिलाने में बड़ा रोल; फोर्स 18 को लीड कर चुकी हैं


4 घंटे पहले

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6 मई को हुए सिंदूर ऑपरेशन के बाद कर्नल सोफिया कुरैशी की चर्चा हर तरफ की जा रही है। पिछले 4 दिन में सोफिया तीन प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुकी हैं। लेकिन सोफिया न सिर्फ ऑपरेशन सिंदूर बल्कि महिलाओं को स्थायी कमीशन में जगह दिलाने वाली चर्चा में भी शामिल हैं।

17 फरवरी 2020 को जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अजय रस्तोगी की बेंच ने एक ऐतिहासिक फैसला दिया था। इस फैसले में दिल्ली हाईकोर्ट के भारतीय सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन (पीसी) देने के फैसले को बरकरार रखा गया था और इसमें लेफ्टिनेंट कर्नल सोफिया का जिक्र भी किया गया था।

2003, 2006 में लगाई रिट याचिकाओं पर थी सुनवाई

महिला अधिकारियों और एडवोकेट बबीता पुनिया ने साल 2003 और 2006 में दिल्ली हाईकोर्ट में रिट याचिकाएं दायर की थीं। इन याचिकाओं के एक सेट पर बहस शुरू हुई थी जिसमें स्थायी कमीशन अलॉटमेंट में मेल ऑफिसर्स की तरह ही शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) अधिकारियों को पद मिलने की मांग की गई थी।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने फैसले के दौरान कर्नल सोफिया का उदाहरण दिया

ये याचिका महिलाओं को सेना में स्थायी कमीशन को लेकर थी। तब डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कर्नल सोफिया (तब लेफ्टिनेंट) के कामों का उदाहरण देते हुए जेंडर बेसिस पर होने वाले भेदभाव को पूरी तरह अन्याय बताया था।

जस्टिस चंद्रचूड़ की बेंच ने सेना में महिलाओं के योगदान को सराहा और केंद्र सरकार में किसी महिला ऑफिसर की भर्ती के लिए जेंडर, मदरहुड और युद्ध के मैदान की स्थितियों में महिला ऑफिसर्स को लेकर बनाई गई रूढ़िवादी मान्यताओं की निंदा की थी।

एक्सरसाइज फोर्स 18 की लीडर रहीं सोफिया

बेंच ने अपने इस फैसले में कहा था कि सोफिया कुरैशी देश की पहली महिला अधिकारी हैं जो एक्सरसाइज फोर्स 18 मल्टीनेशनल सैन्य अभ्यास की लीडर रहीं हैं। वो संयुक्त राष्ट्र शांति अभियान का हिस्सा रहीं हैं।

ऐसा मानना कि महिलाएं ऐसे पद पर नहीं रह सकतीं, एक पूर्वाग्रह को बताता है और संवैधानिक तौर पर गलत है। इसके साथ ही बेंच ने कहा था कि भारतीय सेना की महिला अधिकारियों ने सेना को गौरवान्वित किया है।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा- महिलाएं अयोग्य नहीं

इसके साथ ही कर्नल सोफिया 2006 में कांगो में, अन्य लोगों के साथ उन देशों में युद्ध विराम की निगरानी करने और मानवीय गतिविधियों में मदद करने की प्रभारी रही हैं। उनके काम में संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में शांति सुनिश्चित करना शामिल था। यही उदाहरण है कि महिलाएं कमांड या कठिन असाइनमेंट के लिए अयोग्य नहीं हैं। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि जेंडर के आधार पर इनकार करना गरिमा का अपमान होगा।

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