Manusmriti removed from DU’s Theology Studies course | DU के धर्मशास्‍त्र स्‍टडीज कोर्स से मनुस्‍मृति हटाई गई: वीसी ने कहा- किसी भी कोर्स में नहीं पढ़ाई जाएगी


44 मिनट पहले

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दिल्‍ली यूनिवर्सिटी ने संस्‍कृत विभाग के कोर्स ‘धर्मशास्‍त्र स्‍टडीज’ की रिकमेंडेड रीडिंग लिस्‍ट से मनुस्‍मृति को हटा दिया है। इसके साथ ही यूनिवर्सिटी प्रशासन ने स्‍पष्‍ट किया है कि अब यूनिवर्सिटी के किसी भी कोर्स में ‘मनुस्मृति’ नहीं पढ़ाई जाएगी।

सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्म X पर यूनिवर्सिटी ने पोस्‍ट कर लिखा, कि संस्कृत विभाग के चार-क्रेडिट कोर्स धर्मशास्त्र स्टडीज़ में ‘मनुस्मृति’ को ‘अनुशंसित पठन’ (recommended reading) के रूप में लिस्‍ट किया गया था, लेकिन अब उसे पूरी तरह से हटा दिया गया है। इसके साथ ही यह पाठ्यक्रम भी कोर्स लिस्‍ट से हटा दिया गया है।

ये कोर्स राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत अंडरग्रेजुएट करिकुलम फ्रेमवर्क (UGCF) में जोड़ा गया था। इस पेपर में रामायण, महाभारत, पुराण और अर्थशास्त्र जैसे ग्रंथ भी शामिल थे।

मार्च में हिस्‍ट्री में जोड़ने की सिफारिश हुई थी

यूनिवर्सिटी में इससे पहले मनुस्‍मृति पढ़ाए जाने को लेकर विवाद हो चुका है। मार्च में हिस्‍ट्री विभाग के हिस्‍ट्री ऑनर्स कोर्स में मनुस्‍मृति जोड़ने की सिफारिश की गई थी। यूनिवर्सिटी ने उस समय कहा था कि DU में मनुस्‍मृति किसी कोर्स में नहीं जोड़ी जाएगी।

इसके अलावा यूनिवर्सिटी के लॉ डिपार्टमेंट में भी मनुस्‍मृति पढ़ाए जाने की सिफारिश की गई थी। फैकल्‍टी मेंबर्स के विरोध के बाद ये फैसला वापिस ले लिया गया।

यूनिवर्सिटी ने अब इसे रिकमेंडेड रीडिंग की लिस्‍ट से भी हटा दिया है। वाइस चांसलर योगेश सिंह ने एक न्‍यूज से कहा है, ‘हमारा स्‍टैंड साफ है। मनुस्‍मृति DU के किसी भी कोर्स में नहीं पढ़ाई जाएगी। यूनिवर्सिटी ये पहले भी साफ कर चुकी है। इसे संस्‍कृत डिपार्टमेंट के धर्मशास्‍त्र स्‍टडीज से हटा दिया गया है। भविष्‍य में भी अगर इसे पढ़ाए जाने की कोई सिफारिश आएगी, तो उसे हटा दिया जाएगा।’

क्या है मनुस्मृति?

मनुस्मृति एक धार्मिक ग्रंथ है, जिसमें धर्म और राजनीति के बारे में बताया गया है। इसमें 2694 श्लोक हैं। इसे 12 अध्याय में बांटा गया है। इन 12 अध्यायों में हिंदू संस्कार, श्राद्ध व्यवस्था, आश्रम की व्यवस्था, हिंदू विवाह और महिलाओं के लिए नियम बताए गए हैं। इसमें जाति व्यवस्था को भी बताया गया है।

मनुस्मृति का विरोध क्यों?

मनुस्मृति में कहा गया है कि ब्रह्माजी ने विश्व की रचना की थी। ब्रह्माजी के मुंह से ब्राह्मण शब्द निकला था। इसमें बताया गया था कि ब्राह्मण का मतलब किसी विषय पर अध्ययन करना या यज्ञ करना होता है। वहीं, क्षत्रिय वर्ण ब्रह्माजी की भुजाओं से निकला, जिसका मतलब होता है रक्षा करना।

मनुस्मृति में लिखा है कि ब्रह्माजी के पेट से वैश्य वर्ण निकला। वैश्य का काम समाज का पेट भरना होता है, जैसे सामाजिक कार्य और खेती, किसानी। शूद्र ब्रह्माजी के पैर से उत्पन्न हुए। बताया गया कि इनका काम स्वच्छता बनाए रखना है।

मनुस्मृति में महिलाओं के नियमों के बारे में भी बताया गया है। इसमें लिखा गया है कि महिलाओं को पिता, पति और पुत्र से अलग अकेले कभी नहीं रहना चाहिए। महिलाओं और पिछड़े वर्ग को लेकर लिखी बातों को लेकर मनुस्मृति का विरोध होता है।

अंबेडकर ने जलाई थी मनुस्मृति

अंबेडकर ने अपनी किताब ‘फिलॉसफी ऑफ हिंदुइज्म’ में लिखते हैं, “मनु ने चार वर्ण व्यवस्था की वकालत की थी। मनु ने इन चार वर्णों को अलग-अलग रखने के बारे में बताकर जाति व्यवस्था की नींव रखी। हालांकि, ये नहीं कहा जा सकता है कि मनु ने जाति व्यवस्था की रचना की है। लेकिन उन्होंने इस व्यवस्था के बीज जरूर बोए थे।”

डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने 25 जुलाई, 1927 को महाराष्ट्र के कोलाबा के महाद में सार्वजनिक रूप से मनुस्मृति जलाई थी।

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