PhD necessary for job of canteen manager Viral Post of China | कैंटीन मैनेजर की जॉब के लिए PhD मांगी: 20.8 लाख सालाना की सैलरी; चीन की यूनिवर्सिटी का जॉब ऑफर वायरल


9 मिनट पहले

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चीन की एक यूनिवर्सिटी में निकली कैंटीन मैनेजर की वैकेंसी के लिए PhD की डिग्री मांगी गई है। इस जॉब ऑफर का पोस्‍ट सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।

ये जॉब ऑफर चीन की प्रतिष्ठित साउथईस्‍ट यूनिवर्सिटी ने अपनी ऑफिशियल वेबसाइट पर जारी किया है। इस पोस्‍ट पर चुने गए कैंडिडेट को कैंटीन एक्टिविटीज का ध्‍यान रखना होगा। साथ ही फूड सेफ्टी की गारंटी, कॉन्‍ट्रैक्‍ट कंट्रोल, एडमिनिस्‍ट्रेटिव जिम्‍मेदारियां और फूड मेकिंग प्रोसेस की निगरानी करनी होगी।

ये जॉब पोस्टिंग चीन की साउथईस्‍ट यूनिवर्सिटी में निकली है।

ये जॉब पोस्टिंग चीन की साउथईस्‍ट यूनिवर्सिटी में निकली है।

हालांकि, ध्‍यान देने वाली बात जॉब रोल्‍स नहीं, बल्कि क्‍वालिफ‍िकेशंस हैं। इस पोस्‍ट पर अप्‍लाई करने के लिए कैंडिडेट को डॉक्‍टरेट होना जरूरी है। इसके अलावा, कैंडिडेट को अंग्रेजी भाषा में दक्ष होना चाहिए और MS ऑफिस सॉफ्टवेयर्स का पूरा ज्ञान होना चाहिए।

फूड, न्‍यूट्रिशन और कल‍िनरी आर्ट्स में ड‍िग्री और कम्‍यूनिस्‍ट पार्टी की मेंबरशिप वाले कैंडिडेट्स को जॉब‍ में वरीयता दी जाएगी।

सैलरी 20.8 लाख रुपए सालाना

इस जॉब के ल‍िए यूनिवर्सिटी 1,80,000 युआन यानी लगभग 20.8 लाख रुपए सालाना की सैलरी ऑफर कर रही है। इसके बावजूद चीन के सोशल मीडिया पर इसकी आलोचना हो रही है। यूजर्स का कहना है कि ये जॉब पूरी तरह मैनेजेरियल है, फिर इसके लिए हाई एकेडमिक डिग्री वाली क्‍वालिफिकेशन की क्‍या जरूरत है।

यूनिवर्सिटी ने कहा-खाना बनाने की जॉब नहीं है

विवाद पर जवाब देते हुए यूनिवर्सिटी ने कहा कि इस जॉब में कैंडिडेट को खाना खुद नहीं बनाना है। इसलिए फूड इंडस्‍ट्री में एकेडमिक क्‍वालिफिकेशन रखने वाले कैंडिडेट्स की जरूरत है।

हालांकि, इस जॉब में कैंडिडेट को सब्‍जी काटने या खाना पकाने जैसे काम नहीं करने हैं, मगर फिर भी सोशल मीडिया पर जॉब पोस्टिंग पर सवाल उठ रहे हैं। एक यूजर ने लिखा- एक ऐसे जॉब मार्केट में जहां स्‍टेबल एडमिनिस्‍ट्रेटिव पदों पर भी अब पीएचडी धारकों की नियुक्ति हो रही है। डिग्रियां योग्यता की नहीं बल्कि जॉब सिक्‍योरिटी की प्रतीक बन गई हैं। शिक्षा का उद्देश्य हमें केवल योग्य बनाना नहीं, सोचने की क्षमता विकसित करना होना चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो हम असली दुनिया की समस्याओं के हल निकालने के बजाय बस डिग्रियां ही पैदा करते रहेंगे।

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