मध्यप्रदेश में माध्यमिक व प्राथमिक शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में हुई नियुक्तियों को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने शनिवार को महत्वपूर्ण आदेश जारी करते हुए राज्य सरकार को नियुक्तियों को याचिका के अंतिम निर्णय के अधीन रखने
.
उक्त निर्देश याचिकाकर्ता प्रदीप कुमार पांडे बनाम मध्य प्रदेश राज्य व अन्य के मामले में पारित किया गया है। जस्टिस डीडी बंसल की एकलपीठ ने सुनवाई करते हुए राज्य सरकार सहित प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड, लोक शिक्षण संचालनालय और कर्मचारी चयन मंडल को नोटिस जारी कर जबाव मांगा है। मामले पर अगली सुनवाई अब चार सप्ताह बाद होगी।
याचिकाकर्ता प्रदीप कुमार पांडे ने माध्यमिक शिक्षक (संस्कृत) पद हेतु भर्ती प्रक्रिया में पात्रता नियमों में अचानक हुए बदलाव को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता का कहना है कि उन्होंने वर्ष 2023 में आयोजित माध्यमिक शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) में सफलता प्राप्त करते हुए सभी आवश्यक योग्यताएं भी पूरी की थी। लेकिन राज्य सरकार ने वर्ष 2024 में नया एग्जाम मैनुअल जारी किया। जिसमें माध्यमिक शिक्षक (संस्कृत) पद के लिए पात्रता शर्तों में संशोधन कर दिया गया।
वर्ष 2018 के नियमों के अनुसार, माध्यमिक शिक्षक (संस्कृत) पद के लिए शास्त्री उपाधि (द्वितीय श्रेणी) संस्कृत साहित्य/व्याकरण के साथ अनिवार्य थी। इसी आधार पर याचिकाकर्ता ने 2023 में आयोजित पात्रता परीक्षा में भाग लिया और उसे सफलतापूर्वक उत्तीर्ण किया। हालांकि, वर्ष 2024 में जारी नए परीक्षा संचालन मैनुअल में पात्रता मानदंड को संशोधित करते हुए संस्कृत साहित्य को ही मुख्य विषय के रूप में तीन वर्ष अध्ययन करने की अनिवार्यता लागू कर दी गई। इस बदलाव के कारण याचिकाकर्ता और अन्य समान योग्यता वाले उम्मीदवार अचानक अयोग्य हो गए।
याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट आर्यन उरमलिया ने हाईकोर्ट के समक्ष तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा कि पात्रता में अचानक बदलाव करना न केवल अनुचित है, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 14 का भी स्पष्ट उल्लंघन है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि भर्ती प्रक्रिया के बीच में पात्रता मानदंड में बदलाव करना उम्मीदवारों के अधिकारों का हनन है और यह प्रक्रिया की पारदर्शिता के खिलाफ है। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए स्पष्ट आदेश दिया है कि 10,000 पदों पर की गई या की जाने वाली सभी नियुक्तियां इस याचिका के अंतिम निर्णय के अधीन रहेंगी। अदालत ने राज्य सरकार को एक सप्ताह के भीतर नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है, जिसमें चार सप्ताह में जवाब प्रस्तुत करने को कहा गया है।