58 मिनट पहले
- कॉपी लिंक

23 मई को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय श्रीनिवास ओका का कार्यकाल पूरा हुआ। अपने आखिरी वर्किंग डे से 2 दिन पहले ही उनकी मां का निधन हो गया। इसके बावजूद उन्होंने आखिरी दिन 10 फैसले सुनाए।
25 मई 1960 को जन्मे जस्टिस ओका ने अपने करियर की शुरुआत ठाणे जिला कोर्ट में अपने पिता जस्टिस श्रीनिवास डब्यू. ओका के चैम्बर से की। 29 अगस्त 2003 को बॉम्बे हाई कोर्ट के एडिशनल जज के तौर अपॉइंट हुए। नवंबर 2005 में उनकी नियुक्ति पर्मानेंट हो गई।
10 मई 2019 को ओका ने कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के तौर पर शपथ ली। इसके बाद अगस्त 2021 में, वे सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बने। मई 2025 में उनका कार्यकाल पूरा हुआ।

अलग विचारधारा रखना अपराध नहीं- जस्टिस ओका
अपने रिटायरमेंट से कुछ दिन पहले, जस्टिस ओका और जस्टिस उज्जल भुयान की बेंच ने प्रतिबंधित पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के पूर्व महासचिव अब्दुल साथर को जमानत दी। साथर 2022 में एक RSS कार्यकर्ता श्रीनिवासन की हत्या के मामले में आरोपी थे। अपने फैसले के साथ जस्टिस ओका ने कहा था कि अलग विचारधारा रखना कोई अपराध नहीं है।
CJI गवई ने ‘विनम्रता की मूर्ति’ की संज्ञा दी
जस्टिस ओका के फेयरवेल के मौके पर भारत के चीफ न्यायाधीश ने बताया कि वे हमेशा से ही अपने काम को प्राथमिकता देने वाले जज थे। न सिर्फ अपनी मां के निधन पर, बल्कि बम्बई हाईकोर्ट में जज रहते हुए अपने पिता के निधन पर भी उन्होंने काम जारी रखा था।
उन्होंने अपने सहयोगियों से कहा था कि उन्हें सांत्वना देने के लिए उनके घर जाने के बजाय उनके चैम्बर में मिलने आ जाएं। CJI गवई ने उन्हें ‘निजी स्वतंत्रता के संरक्षक’, ‘दृढ़ न्यायाधीश’ और ‘विनम्रता की मूर्ति’ की संज्ञा दी।
————

ये खबरें भी पढ़ें…
आपने स्कूलों में ब्लैकबोर्ड देखे होंगे, अब शुगरबोर्ड लग रहे: पीएम ने ‘मन की बात’ में सराहा; जानें मीठा खाने के रिस्क और हेल्दी ऑप्शंस

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को ‘मन की बात’ में CBSE के शुगर बोर्ड इनीशिएटिव की सराहना की। पीएम ने कहा कि शुगर बोर्ड बच्चों को शुगर खाने के हाई रिस्क से बचाने के लिए बहुत जरूरी है।पूरी खबर पढ़ें…